अब भी तेरा है…

अब भी तेरा है…

हृदय के किसी कोने में,निवास अब भी तेरा है,किसी धमनी या किसी शिरा में,बहता नाम अब भी तेरा है,हर श्वास में आती जाती हवा,उस हवा में एहसास अब भी तेरा है,धक-धक की सी ध्वनि हृदय की,वो आवाज़ अब भी तेरा है,मैं एकांकी, विचार शून्य सा,प्रेमाकुल यह चातक अब भी तेरा है,ना विस्मरण तुझे हो,मैं और मेरा यह प्राण अब भी तेरा है।।

हमने देखा है…

हमने देखा है…

लिखूंगा किताब अगर ज़िंदगी पर,तो लिखूंगा, हमने दौर ऐसा भी देखा है।। हवा के होते हुए,बीन हवा के इंसान मरते देखा है।। जो कभी वीरान पड़े रहते थे,उन शमशानों में लाशों का ढेर लगा देखा है।। दारू तो हर कही मील रही थी,दवा का कलाबाजार होते देखा है।। इंसानी मौते तो बहुत देखी,मगर इंसान के कंधो पर,इंसानियत का जनाजा पहली बार देखा है।। दब जाती थी आह मरने वालो की,चुनावों का ऐसा शोरगुल देखा है;वो तकरीर ही इतनी आला करता…

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पलायन की पीर

पलायन की पीर

चहरे के दाग़ ही नहीं,दिल का हर मर्ज बताते है,आईने ही है,जो बेफिक्र होकर, हर सच बताते है।। घर का अंधेरा ही नहीं मिटाती,नई उम्मीद भी जगाती है,एक शमा ही है,जो जलकर, उजाले की कीमत बताती है।। सपने ही नही बिखरते,घर भी उजड़ जाते है,नम आंखे क्या बतलाएंगी,पलायन की पीर, पैरों के छाले बताते है।।

अक्षय आयु

अक्षय आयु

मैं क्या मागूंगा तुझसे,ना धन धरा ना शीश महल,मांग रहा हूं, अपने हिस्से का देय श्रीकण्ठ(शिव),देदो अक्षय आयु, आरोग्य अजर।। मैंने नीजहित कब क्या मांगा,परोपकार परम हित जाना,मेरी भी सुन लो अरदास श्रीकण्ठ,देदो अक्षय आयु, आरोग्य अजर।। क्या होता है अभीमंत्रो के जापो से?मनुष्य कैसे बचता नियती के शर चापो से?इस जीवन मंथन के हलाहल का ओ नीलकंठ पान करो,और देदो अक्षय आयु, आरोग्य अजर।।

जरूरी हो गया है…

जरूरी हो गया है…

बहुत गम है, चहरो पर मुस्कान कम है;दिल खोलकर एक कहकहा लगाना जरूरी हो गया है।। लाख कोशिशों पर भी ये मंजर नही बदलता,लगता है खुद बदल जाना जरूरी हो गया है।। हमने जंगल के जंगल तबाह कर दिए,कुदरत को लगा, की इंसाफ करना जरूरी हो गया है।। जिंदगी के मायने अब समझ आएंगे तुम्हे,की क्यों पेड़ लगाना अचानक जरूरी हो गया है।। परेशान है इंसानियत तमाम हलकों में,अब हम सबका इंसान हो जाना जरूरी हो गया है।।