ना मै तब रोया, ना अब रोया..
पट पड़ी है भोर द्वार पर, पथ सारे उजले;रविकिरण से सौरभ सौरभ, यह नभ थल;तव स्मृतिपुर्ण थी बीती रजनी,ना मैं तब सोया, ना अब सोया।। अब यहां बाग़ फूलों से खिल उठे है,पंछी मधुर चहचहाते है,वीरान था ये मोड़ कभी, मै जहां तेरे प्रतीक्षा में रहा,ना तुम तब आयी, ना अब आयी।। मैं सब कुछ पा गया, एक तुझे छोड़कर,अब हर महफ़िल मेरी बात करे,कुछ दुख तो था तेरे जाने का,पर ना मै तब रोया, ना अब रोया।।