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Category: वीर-रस

उम्मीद क्या रखना…

उम्मीद क्या रखना…

ये भी है की इस राह में खतरे बहुत हैं, हवा का रुख़ ही खिलाफ़ हो, तब तूफान से क्या डरना? ये फ़सल यूं भी खराब होनी ही थी, हमने बोया ही देर से था, फिर बारिश पर दोष क्या मढ़ना? ये कश्ती डूबती है तो डूब जाए अभी, उस पार जाना है तो खुद से रखो, यू टूटी हुई पतवार से उम्मीद क्या रखना?

वीरगति तक लड़ना होगा..

वीरगति तक लड़ना होगा..

रहो खड़े जीवन रण में, हो निर्भीक निडर, कर गर्जन गभीर, एक निर्मम हुंकार भरो, शर[1] रिक्त हो जब भी तूणीर, स्वयं का संधान करो, आत्मचिंतीत जीवन लक्ष्यों के भेदन का, ऎसा आत्मघाती, कोई तो उपाय करो।। है अभेद्य क़िले सा वह नर, जलती हो जिसमें, विजय की आग प्रखर, प्रस्फुटित[2] हो, जब भी उसका अंत:अनल[3], मचा देता है फिर वह भीषण गदर, बांध नहीं सकते तब उसे, कोई भी पाश प्रबल।। चुनौतियों से श्रृंगारित रणभूमि, तुम क्यो डर डर…

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अर्जुन शस्त्र उठाओ

अर्जुन शस्त्र उठाओ

महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने शस्त्र त्याग कर युद्ध ना करने का निर्णय लिया, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें पुनः युद्ध के लिए सज्ज करने हेतु क्या कहा होगा, उसी पार्श्वभूमी पर लिखी गई कविता “अर्जुन शस्त्र उठाओ….” हो धीर, धर धनु धनंजय[1];उठा बाण, कर संधान लक्ष्य पर,मत भूल जो आघात हुए तव वक्ष पर,इन अपनों में, गैरो को पहचानो,लाक्षागृह की षड्यंत्रकारी आग ना भूलो,अर्जुन शस्त्र उठाओ।। द्यूत क्रीड़ा[2] में पासो का पक्षपात,दुर्योधन का वह अहंकारी हास,अंगराज(कर्ण)…

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