उम्मीद क्या रखना…

उम्मीद क्या रखना…

ये भी है की इस राह में खतरे बहुत हैं,
हवा का रुख़ ही खिलाफ़ हो, तब तूफान से क्या डरना?

ये फ़सल यूं भी खराब होनी ही थी,
हमने बोया ही देर से था, फिर बारिश पर दोष क्या मढ़ना?

ये कश्ती डूबती है तो डूब जाए अभी,
उस पार जाना है तो खुद से रखो,
यू टूटी हुई पतवार से उम्मीद क्या रखना?

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