ज़ख्म कितना बड़ा है

ज़ख्म कितना बड़ा है

उन्हें भी अक्लमंदी के सबक आने लगे है,
वो लोग जो जिंदगी के मुहाने पर खड़े है।

कोई दरख़्त था खड़ा यहां कल तक,
आज देखो टूटी टहनियां और पत्ते बिखरे पड़े है।

आदमी है आदमी से बैर रखता,
दिखाओ कोई जानवर, जो जंग पर अड़ा है।

जो वतन छोड़ने को मजबूर है अपना,
उनसे पूछो कि ये ज़ख्म कितना बड़ा है।

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