आओ! मातृ-भूमि की व्यथा सुनाऊं
पहले कुछ गोरो ने, नंदनवन उजाड़ दिया;समृद्ध आर्यावर्त का, रत्नमुकुट उतार लिया;खींची लकीर, दामन भारत माता का फाड़ दिया;यह दुखद कथा है, सतलुज में लाशो के बहजाने की;युग-जननी की खंडित मुरत तुम्हें दिखाऊ;आओ! मातृ-भूमि की व्यथा सुनाऊं||1|| वो कुछ ना खो कर भी, जो बलिदानी है;उनके वंशज आज, घनघोर अहंकारी है;जो बलिदानी प्राणो के, उन विरो का ना जय गान किया;चाटुकार कलमो ने, ना सच्चा इतिहास लिखा;तुम्हें असल इतिहास का राज़ बताऊ;आओ! मातृ-भूमि की व्यथा सुनाऊं||2|| अब वह अपमानित अपने…