एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश

एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश

विकट हैं वक्त, विलाप कर रही मां भारती
अपनों के विच्छेदित शव समेट रहा है देश
मातृ भूमि के विरो संग न्याय होना चाहिए
हर एक शहादत का हिसाब चाहता है देश
एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश।।1।।

साबुत गए थे जो, खंड विखंड हो आऐ हैं
क्षित विक्षित पुत्र का अंतिम दर्शन चाहती हैं मां
चलना सिखाया जिसे, उसिकी अर्थी को कंधा दे रहा पिता
शत्रुओ के घर भी मातम चाहता है देश
एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश।।2।।

उजड़ी हुई मांगो का, क्या कोई जवाब है?
टूटी हुई चूड़ियों का, क्या कोई हिसाब है?
कब तक यूहीं मंगलसूत्र तोड़े जाएंगे?
वीरांगनाओ के उतरे हुये श्रृंगार का सम्मान चाहता है देश
एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश।।3।।

अब शिष शत्रुओं के भी उतार लेने चाहिए
मचल रहे गीदडो का शिकार होना चाहिए
कुत्तों को शेर से उलझने का सबक मिलना चाहिए
दिल्ली के दरबारो से अब सिर्फ निंदा नहीं चाहता देश
एक बार फिर से प्रतिशोध चाहता है देश।।4।।

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