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Category: प्रेरक

पलायन की पीर

पलायन की पीर

चहरे के दाग़ ही नहीं,दिल का हर मर्ज बताते है,आईने ही है,जो बेफिक्र होकर, हर सच बताते है।। घर का अंधेरा ही नहीं मिटाती,नई उम्मीद भी जगाती है,एक शमा ही है,जो जलकर, उजाले की कीमत बताती है।। सपने ही नही बिखरते,घर भी उजड़ जाते है,नम आंखे क्या बतलाएंगी,पलायन की पीर, पैरों के छाले बताते है।।

उम्मीद क्या रखना…

उम्मीद क्या रखना…

ये भी है की इस राह में खतरे बहुत हैं, हवा का रुख़ ही खिलाफ़ हो, तब तूफान से क्या डरना? ये फ़सल यूं भी खराब होनी ही थी, हमने बोया ही देर से था, फिर बारिश पर दोष क्या मढ़ना? ये कश्ती डूबती है तो डूब जाए अभी, उस पार जाना है तो खुद से रखो, यू टूटी हुई पतवार से उम्मीद क्या रखना?

प्रार्थना

प्रार्थना

कर दो बेड़ा पार प्रभुजी, यह रोग विकट विपदा, हम पर संकट अती भारी, यही काज आए शरण तुम्हारी, हे! गोविंद, फ़िर उड़ा दो अबीर गुलाल, कर दो बेड़ा पार प्रभुजी।। जो निसहाय, निज घर लौट रहे, उनको संबल, सुरक्षा दो, करो कृपा कुछ ऎसी, भुख़ से कोई प्रण न जाए, मनुज – मनुज का भेद मिटा दो, हे! गोविन्द, फिर से कोई माया कर दो, कर दो बेड़ा पार प्रभुजी।। तुम सदय सदा, निज भक्तन हितकारी, तुमही द्रोपदी का…

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वीरगति तक लड़ना होगा..

वीरगति तक लड़ना होगा..

रहो खड़े जीवन रण में, हो निर्भीक निडर, कर गर्जन गभीर, एक निर्मम हुंकार भरो, शर[1] रिक्त हो जब भी तूणीर, स्वयं का संधान करो, आत्मचिंतीत जीवन लक्ष्यों के भेदन का, ऎसा आत्मघाती, कोई तो उपाय करो।। है अभेद्य क़िले सा वह नर, जलती हो जिसमें, विजय की आग प्रखर, प्रस्फुटित[2] हो, जब भी उसका अंत:अनल[3], मचा देता है फिर वह भीषण गदर, बांध नहीं सकते तब उसे, कोई भी पाश प्रबल।। चुनौतियों से श्रृंगारित रणभूमि, तुम क्यो डर डर…

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अश्वमेध यज्ञ

अश्वमेध यज्ञ

भरो उड़ान, की ये आसमान तुम्हारा है,करो सृजन, हर साधन तुम्हारा है,इच्छित गंतव्य का, पथ घोर कठीन है,लड़ो, की अब ये संघर्ष तुम्हारा है।।1।। क्षितिज को छुना है, नक्षत्र तोड़ लाने है,यही तो बस प्रण तुम्हारा है,क्या भला, क्या बुरा सब बीत जाएगा,उम्मीद रखो, की आने वाला यह वक्त तुम्हारा है।।2।। बिन विफलता, क्या सफलता?,यदी मनोबल, शीखर सम ऊंचा तुम्हारा है,प्रयत्न जारी बस तुम रखो,वो रात तुम्हारी थी, ये दिन भी तुम्हरा है।।3।। अविरत चलना, गुण धारा का,यह गुण धरो,…

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