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Category: प्रेरक

मेरा एक घर है गांव में

मेरा एक घर है गांव में

यू दर दर भटकता, मुकद्दर की फ़िक्र करतामुसाफिर हूं मैं इस शहर में, कभी वापस लौट जाऊंगासफर पर निकला हूं, अनजानों संग नाव मेंआशियानो की फ़िक्र नहीं मुझे, मेरा एक घर है गांव में।।1।। हर ग़म से बेखबर था, मां के आंचल की जबतलक छाव थीहाथ छूटते ही उसका, मुसीबतों से घिर गया मैंखुले आसमान उड़ता था कभी, अब बेड़ियां हैं पांव मेंपिंजरों में रहने की आदत नहीं मुझे, मेरा एक घर है गांव में।।2।। तनहा सा लगता हूं, इस…

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अंतर-द्वंद

अंतर-द्वंद

अंजान डगर, अंजान सफ़र;ना खुद की, ना मंजिल की खबर।। ना शब्द से शब्द मिलता, ना काफिया मिलता कहीं;गैर मिलते हर मोड़ पे यहां, ना अपना मिला कोई।। खुद को ढूंढू या खुदा को, समझ नहीं आता;जमाने भर से मिलता हूं, खुद से मिल नहीं पाता।। वो मेरे सपनों की राह न चली;जिंदगी गज़ब की बेवफा निकली।। गिरता, संभलता, लड़खड़ाता कभी;सिख रहा हूं जीने का सबक जिंदगी से।। खुद से शिकायत, खुद ही से शिकवा;मेरा यह युद्ध, है मेरे ही…

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मैं भूल जाऊंगा….

मैं भूल जाऊंगा….

जिम्मेदारियां ही रास्ता सपनों का काट जाती है,वरना, कोई तूफानों से लडने का जज़्बा लिए,किनारों पर रेत का घर क्यो बनायेगा।। हमारे ज़मीर से है रिश्ता उसका,हमारा ही बदला है पता शायद,दिल अब भी गाव के उसी घर में रहता हैं।। मुझे शिक़ायत करनी थी,की, आज खाना अच्छा नहीं बना,फिर याद आया, यहां मां नहीं रहती।। घर कब जाइएगा, की ये अब त्यौहार बताते हैं,शुकर है, दिल की ज्यादा नहीं चलती,वो राज़ी है, दिवाली हर महीने मनाने को।। कोई पूछेगा…

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आत्म युद्ध

आत्म युद्ध

बहुत सह लिए घाव समय के, जीवन के भी व्याप बहुत से;समझौता नहीं, युद्ध की तू बात कर;आगे बढ़ और प्रतिघात कर।।1।। जो तेरा है, हैं वो अनुकंपा ईश्वर की;ध्येय तेरा कर्म हो, और तू लक्ष ही बात कर;आगे बढ़ और प्रतिघात कर।।2।। ना भयभीत हो, मार्ग में जब हों घोर तम(अंधकार);आंखे बंद कर, आत्मज्योती की रश्मि से स्वमार्ग प्रदीप्तमान कर;आगे बढ़ और प्रतिघात कर।।3।। तू ही तेरा प्रतिद्वंद्वी हैं, दूजा कोई और नहीं;आत्म युद्ध को जीत ले, फिर विजयश्री…

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अभी लिखना बाक़ी है….

अभी लिखना बाक़ी है….

क्यों कलम रोक दू?, लिखने का प्रण त्याग दू!;उपहास के भयवश, सत्य से मुंह मोड़ लू?;अभी तो छंद लिखे है, नौ रस लिखना बाक़ी है;मैंने बस विरह लिखा, अभी मिलन का उत्सव लिखना बाक़ी है।। शब्द मेरे, निज़ व्यथा का मुखर साक्ष है;मुक्तक-मुक्तक मेरे सुख – संघर्ष की बात कहें;अभी तो एक क्षण लिखा है, सारा जीवन लिखना बाक़ी हैं;मैंने बस स्व [1] लिखा, अभी सारा संसार लिखना बाक़ी है|| लिए स्वप्न भोर के आंखो में, अतृप्त भटक रहा;नित्य प्रयोग…

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