अभी लिखना बाक़ी है….

अभी लिखना बाक़ी है….

क्यों कलम रोक दू?, लिखने का प्रण त्याग दू!;
उपहास के भयवश, सत्य से मुंह मोड़ लू?;
अभी तो छंद लिखे है, नौ रस लिखना बाक़ी है;
मैंने बस विरह लिखा, अभी मिलन का उत्सव लिखना बाक़ी है।।

शब्द मेरे, निज़ व्यथा का मुखर साक्ष है;
मुक्तक-मुक्तक मेरे सुख – संघर्ष की बात कहें;
अभी तो एक क्षण लिखा है, सारा जीवन लिखना बाक़ी हैं;
मैंने बस स्व [1] लिखा, अभी सारा संसार लिखना बाक़ी है||

लिए स्वप्न भोर के आंखो में, अतृप्त भटक रहा;
नित्य प्रयोग यह जीवन, कभी सफल – कभी विफल रहा;
अभी तो विफलता लिखीं है, हर उपलब्धी लिखना बाक़ी हैं;
मैंने बस आरंभ लिखा, अभी अंत लिखना बाक़ी है।।

1. स्व – स्वयं, खुद ।

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