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Category: उर्दू कविता

हमने देखा है…

हमने देखा है…

लिखूंगा किताब अगर ज़िंदगी पर,तो लिखूंगा, हमने दौर ऐसा भी देखा है।। हवा के होते हुए,बीन हवा के इंसान मरते देखा है।। जो कभी वीरान पड़े रहते थे,उन शमशानों में लाशों का ढेर लगा देखा है।। दारू तो हर कही मील रही थी,दवा का कलाबाजार होते देखा है।। इंसानी मौते तो बहुत देखी,मगर इंसान के कंधो पर,इंसानियत का जनाजा पहली बार देखा है।। दब जाती थी आह मरने वालो की,चुनावों का ऐसा शोरगुल देखा है;वो तकरीर ही इतनी आला करता…

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ज़ख्म कितना बड़ा है

ज़ख्म कितना बड़ा है

उन्हें भी अक्लमंदी के सबक आने लगे है,वो लोग जो जिंदगी के मुहाने पर खड़े है। कोई दरख़्त था खड़ा यहां कल तक,आज देखो टूटी टहनियां और पत्ते बिखरे पड़े है। आदमी है आदमी से बैर रखता,दिखाओ कोई जानवर, जो जंग पर अड़ा है। जो वतन छोड़ने को मजबूर है अपना,उनसे पूछो कि ये ज़ख्म कितना बड़ा है।