युग-पुरुष भारत

युग-पुरुष भारत

सहस्त्र युगों का इतिहास अमर है,
सभ्यता का यही प्रथम विस्तार हुआ,
जन्मी संस्कृति इसी धरा में,
वेदों का यही निर्माण हुआ,
यह महाकाल का तांडव है, कोई नृत्य नहीं,
युग-पुरुष है, भारत कोई भूखंड नहीं।।

ये कोई संजोग नहीं,
हा यही राम – कृष्ण अवतार हुए,
आज जिस बोध को जग है ढूंढ रहा,
यही बुद्ध को आत्मबोधी ज्ञान हुआ,
सबकुछ त्याग जिन्होंने अहिंसा का मार्ग दिया,
वह केवल ज्ञानी यही वर्धमान हुए,
प्रभु भक्ति का दिव्य उदाहरण,
यही राम भक्त हनुमान हुए।।

हम चरक, हमने आयुर्वेद दिया,
सुश्रुत बन, शल्य चिकित्सा का हमने ही वरदान दिया,
दे शून्य जगत को,
आर्यभट्ट ने ही नौ से आगे विश्व का निर्माण किया।।

सप्त ऋषियों की बैठक से, ठाकुर[1] जिन्हें ले आए,
वह सर्व विवेकी, यही युगयोगी विवेकानंद निर्विकार हुए,
जिन्होंने शब्दों से, भेद मनमानस के खोल दिए,
वो कविकुल मुकुट, इसी धरा ने सुर – कबीर – तुलसीदास दिए।।

हम पोरस[2], जो सिकंदर के विजय रथ को रोक चुके,
हम गुरु गोबिंद सिंह, हम ही है महाराणा प्रताप,
यहां संस्कारो में है, सीख मातृभूमि पर मर मिट जाने की,
ये जन्मस्थली है, भगत – आज़ाद – सुभाष और मंगल पांडे की।।

जग के शोषितो की यह शरणस्थली है,
वसुधैव कुटुम्बकम का ध्येय हमारा,
हमने ना पहले किसी पर शस्त्र प्रहार किया,
विस्तार नहीं भू का, शत्रु हृदय भी,
प्रेम से जीत लेने का है, प्रण हमारा।।

ये भूमि है, देवो, विरो और महापुरूषों की,
कोई पौरूष विहीन मरूथल नहीं,
युग-पुरुष है, भारत कोई भूखंड नहीं।।
युग-पुरुष है, भारत कोई भूखंड नहीं।।

1. ठाकुर – श्री रामकृष्ण परमहंस
2. पोरस – राजा पुरुवास या राजा पोरस, इनका राज्य पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक फैला हुआ था। 

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