अर्जुन शस्त्र उठाओ

अर्जुन शस्त्र उठाओ

महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने शस्त्र त्याग कर युद्ध ना करने का निर्णय लिया, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें पुनः युद्ध के लिए सज्ज करने हेतु क्या कहा होगा, उसी पार्श्वभूमी पर लिखी गई कविता “अर्जुन शस्त्र उठाओ….”

हो धीर, धर धनु धनंजय[1];
उठा बाण, कर संधान लक्ष्य पर,
मत भूल जो आघात हुए तव वक्ष पर,
इन अपनों में, गैरो को पहचानो,
लाक्षागृह की षड्यंत्रकारी आग ना भूलो,
अर्जुन शस्त्र उठाओ।।

द्यूत क्रीड़ा[2] में पासो का पक्षपात,
दुर्योधन का वह अहंकारी हास,
अंगराज(कर्ण) के शुलसम शब्द बाण,
छल शकुनी का, दुःशासन का दुस्साहस,
पितामह का मौन ना भूलो,
अर्जुन शस्त्र उठाओ।।

तुम्हे, मुकूट विहिन धर्मराज स्मरण हो,
दास की उपमा लिए, प्रिय नकुल – सहदेव स्मरण हो,
खड़ा असमर्थ सा, सौ गज बलशाली भीम,
जंघा पीट रहा दुर्योधन, क्या तुम्हे स्मरण है?
बारह वर्षों का वनगमन, अज्ञातवास ना भूलो,
अर्जुन शस्त्र उठाओ।।

यदी अब भी तुम ना आंदोलित हो, तब हे पार्थ,
तुम्हे पांचाली के खुले केशो की शपथ हैै,
इतिहास निर्वीर्य[3] कहेगा, रण छोड़ ना जाओ,
हो सके तो, कुन्ती के दूध का मान बचाओ,
भूलो चाहे सबकुछ, द्रोपदी का चीरहरण ना भूलो,
हे अर्जुन, अब तो शस्त्र उठाओ।।

1. धनंजय, पार्थ : अर्जुन के उपनाम।
2. द्युत क्रीड़ा : जुआ।
3. निर्विर्य : निर्बल, कमज़ोर, नपुंसक।

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