कागज़ के फूल

कागज़ के फूल

अब हमे मोहब्बत नहीं किसी से,
किसी का हो जाने की आरज़ू तक नहीं;
गमलों में बोए थे हमने, उनके दिए फूल,
भूल थी, कि खिलते नहीं कभी कागज़ के फूल।।

बड़ी मेहनत से गुलिस्ता सजाया हमने,
हिफाजत में बगिया की, पतझड़ से भी लड़े;
उन्होंने तौफे में मांगा भी तो क्या?, सिर्फ गुल;
हिस्से हमारे आये उजड़ा हुआ गुलिस्तां और कागज़ के फूल।।

यू बिखरे की फिर संभाले नहीं कभी,
इश्क़ खता का मलाल रहा मर के भी;
वो मिलने आए, जब कब्र पर हमारी जम चूकी थी धूल,
मुस्कुरा कर उसने कब्र पर हमारी, चढ़ाएं कागज़ के फूल।।

और शिकवा भी क्यों करे किसी से,
जब शिकायत हमे खुद ही से थी;
कब्र में लेट कर ही सही, हम भी मुस्कुराए,
याद रहे, की मुरझाते नहीं कभी कागज़ के फूल।।

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