बस एक हम ही नहीं थे….

बस एक हम ही नहीं थे….

ढलती हुई शाम, जलती हुई शमा भी थी;
नूर था चांद का, और थी चांदनी भी;
सभी को बुलाया गया, हर कोई मौजुद था;
बस एक हम ही नहीं थे, महफ़िल में उनके।।1।।

हुई मोहब्बत सिर्फ, पर ना इजहार हुआ;
ना उसने याद किया, और ना भुलाया हमने भी;
हर गैर को दिल में जगह दी उन्होंने;
बस एक हम ही नहीं थे, दिल में उनके।।2।।

हम खुश है, की अब और रुसवाई नहीं होगी;
थक ग‌‌‍‌‍ऎ, अब ना फिर मोहब्बत होगी;
नसीब ने बहुत कुछ दिया उनको;
बस एक हम ही नहीं थे, मुक्कदर में उनके।।3।।

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