अरमान क्या है…

अरमान क्या है…

हर नजरा बदल जाए, वो मेरे हक से चले अगर, अपने हिसाब से जी लू जिंदगी, बस पुछ लो वक्त से, उसकी रजा क्या है।। खुद मर भी जाओ तो गम क्या होगा, मर जाए सपने अगर दोस्तो, मत पूछिए फिर, हाल-ऐ-दिल क्या है।। नींद बमुश्किल भी नहीं आती, कुछ है जो रात भर जागता है, पुछु किस से, इस मर्ज की दवा क्या है।। कोशिश अब भी जारी है, उन्हें पाने की, हर राज़ बता दू दिल का, मगर…

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शब्द

शब्द

शब्द ही शर[1] है,शब्द ही फूल,कभी शूल[2] तो,कभी निश्चय का मूल।।1।। शब्द ही अवि[3] है,शब्द ही अरि[4],कभी अवी[5] तो,कभी चंद्र की ओज।।2।। शब्द ही फल है,शब्द ही पेड़,कभी उत्सव तो,कभी नीज का शोक।।3।। शब्द ही सीमा,शब्द ही संवेग,कभी सुख तो,कभी नीज़ का शोध।।4।। शर : तीर, बाण शूल : कांटा अवि : रक्षक, स्वामी अरि : शत्रु अवी : सूर्य

हालात-ऐ-वतन सुधर जाएंगे

हालात-ऐ-वतन सुधर जाएंगे

अब यही रुकेंगे, और खैर मनाएंगे; बंद है रास्ते हर तरफ, बताओ कहा जाएंगे? गनीमत है, हमारे अपने है इस शहर में; मगर जो बेघर है, सोचो वो गरीब कहा जाएंगे? खुशनसीब हो दोस्त, एक घर है तुम्हरा; ये पेड़ जो टूटा, तो पंछी कहा जाएंगे? घर ने बुलाया भी हमको, पर हम नही लौटे; भरम में थे, की हालात-ऐ-शहर सुधर जाएंगे।। हमे लेकर फिकरमंद ना होना, हम सलामत है; पाबंदियों हटते ही, कुछ दिनो के लिए घर लौट आएंगे।।…

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मेरी कलम

मेरी कलम

वो खुद लयबद्ध रह कर, मुझे शब्दबद्ध करती, अपने बारे ने कुछ ना बताती, मेरे हर राज़ जगभर कहती।। मेरी ढाल बनती, बनती तलवार कभी, मेरा ही मुझपर लुटती, वो प्यार कभी, चन्द्र सी शीत, सूर्य सी ओज कभी, तारको सी श्वेत, प्रदिप्त कभी।। एक रोशनी, मेरे अंतर का अंधकार मिटाती, मुझे सही राह दिखाती, हसीन हुस्न कहा कोई, जो हम से दिल लगाए, कलम है मेरी, जो मुझपर प्यार लुटाए।।

निर्झर वृक्ष के झरते पात

निर्झर वृक्ष के झरते पात

कल बहार उसकी हर शाखा पर छाएंगी,बांध झूला उसकी डाली पर,स्वरबाला कोई फाग गीत भी गाएगी; जो छोड़ गए है पंछी उसको,वापस लौटकर, घरौंदा वहीं सजाएंगे; हम भी चिलचिलाती धूप में,उसकी शीतल छाव बिना मूल्य ही पाएंगे; बस समर्पण का ही तो है, ध्येय उसका,क्या हुआ यदि, वह है सह रहा,हो मौन पतझड़ का हर उत्पात; दुख होता है देखकर,किसी निर्झर[1] वृक्ष के झरते पात[2]।। निर्झर – निस्सहाय, बेसहारा। पात – पत्ते।