ज़ख्म कितना बड़ा है

ज़ख्म कितना बड़ा है

उन्हें भी अक्लमंदी के सबक आने लगे है,वो लोग जो जिंदगी के मुहाने पर खड़े है। कोई दरख़्त था खड़ा यहां कल तक,आज देखो टूटी टहनियां और पत्ते बिखरे पड़े है। आदमी है आदमी से बैर रखता,दिखाओ कोई जानवर, जो जंग पर अड़ा है। जो वतन छोड़ने को मजबूर है अपना,उनसे पूछो कि ये ज़ख्म कितना बड़ा है।

उम्मीद क्या रखना…

उम्मीद क्या रखना…

ये भी है की इस राह में खतरे बहुत हैं, हवा का रुख़ ही खिलाफ़ हो, तब तूफान से क्या डरना? ये फ़सल यूं भी खराब होनी ही थी, हमने बोया ही देर से था, फिर बारिश पर दोष क्या मढ़ना? ये कश्ती डूबती है तो डूब जाए अभी, उस पार जाना है तो खुद से रखो, यू टूटी हुई पतवार से उम्मीद क्या रखना?

रातभर जागकर भी..

रातभर जागकर भी..

रातभर जागकर भी, मैं क्या जागता हूं, जिंदगी आगे और मैं पीछे भागता हूं, कुछ है भी, कभी कुछ भी नहीं है, रास्ता है बस, कोई मुकाम थोड़ी है।। वक्त ने बोहत कम आका था हमे, अपनी बुराईयों का पता था हमे, तुम आओ और तारीफ करो हमारी, तुमसे ऐसी, कोई गुज़ारिश थोड़ी है।। सब पता है हमे, की करना क्या है? फिर सोचता हूं की ये मसला क्या है? हम ही काफी है, हमे बरबाद करने को, हमे किसी…

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प्रार्थना

प्रार्थना

कर दो बेड़ा पार प्रभुजी, यह रोग विकट विपदा, हम पर संकट अती भारी, यही काज आए शरण तुम्हारी, हे! गोविंद, फ़िर उड़ा दो अबीर गुलाल, कर दो बेड़ा पार प्रभुजी।। जो निसहाय, निज घर लौट रहे, उनको संबल, सुरक्षा दो, करो कृपा कुछ ऎसी, भुख़ से कोई प्रण न जाए, मनुज – मनुज का भेद मिटा दो, हे! गोविन्द, फिर से कोई माया कर दो, कर दो बेड़ा पार प्रभुजी।। तुम सदय सदा, निज भक्तन हितकारी, तुमही द्रोपदी का…

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जिंदगी

जिंदगी

बेघर होना, अपनो से बिछड़ जाना, गांव से कूच कर शहर को आना, रोज़ी की तलाश में, दर-दर भटकना, और रोटी के लिए मर जाना, मजदूर के लिए, एक वनवास है जिंदगी।। कर्ज लेकर फसल लगाना, कभी फसल का बर्बाद हो जाना, जो अच्छी हुई, तो कौड़ी मोल बीक जाना, घाटे में रहकर भी, बैंक का कर्ज चुकाना, किसान के लिए, ना उतर सके वो उधार है जिंदगी।। भरपेट खाना, फिर वॉक पर जाना, लाखो कनामा, फिर भी नींद का…

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