तुमको सूचित हो

तुमको सूचित हो

हर वक्त, हर किसी स्मरण में,
एकांत में या, भीड़ भरे सदन में,
चाहे रुका हुआ हूं, या फिर हूं चलन में,
रहू पतझड़, या बासंती छुहन में,
हर पत्र, हर चित्र-स्वयं में,
मैं लिख रहा हूं, गीत सृजन के,
तुमको सूचित हो।।

हर रस, कहीं विरस पर,
छोड़ सब छंद, कहीं अलंकार पर,
बिन चौपाई, हर यमक पर,
खुद के विस्मय, कभी विस्मृती पर,
कभी कनु[1] तो, कभी कनुप्रिया[2] पर,
मैं लिख रहा हूं, गीत प्रेम के,
तुमको सूचित हो।।

हर उस गली, हर मोड़ पर,
आखर – आखर, शब्द सुलभ जोड़कर,
स्वप्रेरित, मैं तव आसक्तित,
अकथित, अलिखित, अनदेखे भाव से,
तव स्मृति में, मग्न निरंतर,
मैं लिख रहा हूं, गीत तुम्हीं पर,
तुमको सूचित हो।।

  1. कनु : भगवान श्री कृष्ण
  2. कनुप्रिया : श्री राधारानी
Comments are closed.